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Corona Update : Sarah Gilbert दे सकती हैं दुनिया को पहला कोरोना वैक्सीन, जानिये पूरी बात

Sarah Gilbert

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, एस्ट्राजेनेका दवा कंपनी के साथ मिलकर यह वैक्सीन बनाने की दिशा में काम कर रही है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक टीम Sarah Gilbert के नेतृत्व में कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने का काम कर रही है.

कौन हैं सारा गिलबर्ट?

Sarah Gilbert ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की उस टीम का नेतृत्व कर रही हैं जो कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की दिशा में सबसे आगे मानी जा रही है. प्रोफेसर सारा गिलबर्ट को हमेशा से अपने बारे में यह पता था कि उन्हें आगे चलकर मेडिकल रिसर्चर बनना है, लेकिन 17 की उम्र में सारा को बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उन्हें शुरुआत कहां से करनी है.

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यूनिवर्सिटी ऑफ एंजलिया से जीव-विज्ञान में डिग्री हासिल करने के बाद सारा ने बायो-केमिस्ट्री में पीएचडी की. उन्होंने अपनी शुरुआत ब्रुइंग रिसर्च फाउंडेशन के साथ की. इसके बाद उन्होंने कुछ और कंपनियों में भी काम किया और ड्रग मैन्युफैक्चरिंग के बारे में सीखा. इसके बाद वो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एड्रियन हिल्स लैब आ पहुंची. यहां उन्होंने शुरुआत की जेनेटिक्स पर काम के साथ. इसके अलावा मलेरिया पर भी उन्होंने काफी काम किया. इसके बाद वो वैक्सीन बनाने के काम से जुड़ गईं.

ट्रायल में बच्चों की मदद

Sarah Gilbert तीन बच्चों (ट्रिपलेट्स) की मां हैं. बच्चों के जन्म के एक साल बाद ही वे यूनिवर्सिटी में लेक्चरर बन गईं और फिर साल 2004 में यूनिवर्सिटी रीडर. 2007 में सारा को वेलकम ट्रस्ट की ओर से एक फ्लू वैक्सीन बनाने का काम मिला और इसी के बाद शुरुआत हुई उनके अपने रिसर्च ग्रुप का नेतृत्व करने के सफर की.

सारा के तीनों बच्चे अब 21 साल के हैं. वे सब भी बायोकेमिस्ट्री से पढ़ाई कर रहे हैं. सारा के इन तीनों बच्चों ने कोरोना वायरस के लिए तैयार की गई एक प्रयोगात्मक वैक्सीन के ट्रायल में हिस्सा भी लिया था. ब्लूमबर्ग की खबर के मुताबिक, ये ट्रायल वैक्सीन उनकी मां यानी सारा की ही तैयार की हुई थी.

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मुश्किल था सफर

सारा कहती हैं ‘काम और पर्सनल लाइफ में तालमेल बिठाकर रख पाना बेहद मुश्किल होता है. यह तब नामुममिन लगते लगता है जब आपके पास कोई सपोर्ट ना हो. मेरे ट्रिपलेट्स थे. नर्सरी फीस मेरी पूरी तनख्वाह से अधिक होती थी. ऐसे में मेरे पार्टनर ने अपना करियर छोड़कर बच्चों को संभाला.’

वो कहती हैं, ‘साल 1998 में बच्चे हुए और उस समय मुझे सिर्फ 18 सप्ताह की मैटरनिटी लीव मिली थी. यह काफी परेशानी वाला वक्त था, क्योंकि मेरे पास तीन प्रीमैच्योर बच्चे थे जिनकी मुझे देखभाल करनी थी. अब भले ही मैं एक लैब हेड हूं, लेकिन मैंने सिक्के का दूसरा पहलू भी देखा है.’

वो कहती हैं कि वैज्ञानिक होने की सबसे प्यारी बात ये है कि आपके लिए काम के घंटे तय नहीं होते हैं. ऐसे में एक मां के लिए काम करना आसान हो जाता है, लेकिन सारा इस बात से भी इनकार नहीं करती हैं कि कई बार ऐसी भी परिस्थिति बन जाती है जब सबकुछ उलझ जाता है और आपको त्याग करने पड़ते हैं.

जो महिलाएं विज्ञान के क्षेत्र में भविष्य बनाना चाहती हैं और परिवार के साथ रहते हुए, उन्हें सलाह देते हुए सारा कहती हैं, ‘पहली बात जो आपके जहन में होनी चाहिए वो ये कि यह बहुत ही मुश्किल भरी चुनौती है. सबसे पहले जरूरी है कि आपके पास हर चीज के लिए योजना हो. साथ ही यह भी तय करना जरूरी है कि आपके साथ कोई ऐसा हो ही जो उस वक्त घर का ध्यान रख सके जब आप काम पर हों.’

 

 

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