भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर तनाव बढ़ रहा है. परंतु वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर 1962 के बाद पहली बार भारत और चीन के सैनिकों के बीच खूनी झड़प हुई है. कोरोना के कारण घरेलू मोर्चे पर बुरी तरह घिरे चीनी नेतृत्व से एलएसी पर तनाव को चरम पर पहुंचाने का अंदेशा पहले भी था…
चार मई को पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी और पैंगॉग झील इलाकों में चीन की घुसपैठ के बाद उसके सैन्य अधिकारी जहां भारत के साथ लगातार शांति वार्ताएं कर रहे थे, वहीं 15 जून की रात उसके सैनिकों ने रात के अंधेरे में भारतीय सैनिकों पर हमला बोल दिया.
भारत और चीन के बीच पहली बार लेफ्टिनेंट जनरल स्तर के सैन्य अधिकारियों की बैठक 6 जून को हुई. बैठक में भारत की ओर से, लेह स्थित भारतीय सेना की 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह शामिल हुए.
उससे पहले भारतीय सेना की उत्तरी कमान के कमांडिंग अफसर लेफ्टिनेंट जनरल वाई के जोशी ने जमीनी हालात की समीक्षा के लिए लेह का दौरा किया था.
इससे पहले दोनों ओर की सीमा चौकियों पर लोकल कमांडर के बीच दस दौर की बातचीत हो चुकी थी. इनमें से तीन बैठकें तो मेजर जनरल स्तर की हुई थीं. मेजर जनरल रैंक के अधिकारियों की अंतिम बातचीत 2 जून को हुई थी.
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के अतिक्रमण की घटनाएं साल में सौ बार से बढ़कर छह सौ बार तक पहुंच गई हैं. दोनों देशों के सैनिकों के बीच जहां तीन साल में कभी एक बार भिड़ंत होती थी, वहीं पिछले एक साल में तीन बार हाथापाई की घटनाएं हो चुकी हैं.
झड़प और तनाव की शुरुआत तब हुई जब बीते महीने चीनी सेना यहां अपनी वास्तविक सीमा से दो किलोमीटर आगे बढ़ गई. घाटी के उस हिस्से में जमावड़ा लगाया जो भारत की अहम सड़क से बमुश्किल दो किलोमीटर दूर है.
यह सड़क दरअसल एलएसी पर भारत की सप्लाई लाइन है. भारत यहां सामरिक बढ़त के लिए चीन की तर्ज पर ही युद्धस्तर पर सड़कें बना रहा है. जाहिर तौर पर चारों तरफ सड़क निर्माण के बाद चीन अपनी स्वाभाविक बढ़त भी खो देगा.