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जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए करनी थी नौकरी, आज उसी के लिए खत्म कर दी ज़िंदगी

“नौकरी”, एक ऐसा शब्द जो कि परिवार को आर्थिक मदद करने के लिए, अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए और समाज में अपने स्तित्व को साबित करने के लिए ज़िंदगी का सबसे अहम खेवैया माना जाने लगा है।
लेकिन कभी कभी जिन्दगी से जुड़ी ये आकांक्षाएं और उम्मीदें हम पर इतनी हावी हो जाती है कि हमें उस ज़िंदगी से भी ज्यादा जरुरी लगने लगती है।

इस विचार को सत्य करती एक निराश कर देने वाली ख़बर झारकंड के चतरा से सामने आई है, जहां नौकरी नहीं मिलने से परेशान रामाधार कुमार सिंह नामक एक युवक ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है. मामला सदर थाना क्षेत्र के सीमा पंचायत के हफुआ गांव का है । जानकारी के अनुसार 26 वर्षीय रामाधार कुमार सिंह नौकरी नहीं मिलने से परेशान था.

घटना शुक्रवार (1 मार्च 2024) देर शाम की है. जब परिजनों ने उसके कमरे में फंदे से लटकता पाया,गांव के लोगों का कहना है कि रामाधार कुमार सिंह नेवी में सेलेक्ट हो गया था. लेकिन, तभी अचानक अग्निपथ योजना आने के बाद उस नियुक्ति प्रक्रिया को रद्द कर दिया गया. इसके बाद रामाधार ने झारखंड स्टाफ सेलेक्शन कमीशन (जेएसएससी) की ओर से आयोजित कॉमन ग्रेजुएट लेवल परीक्षा दी. परीक्षा का पेपर लीक हो गया और इस परीक्षा को भी रद्द कर दिया गया.

इधर इन दो घटनाओं से रामाधार की नौकरी की आस टूटने लगी. और वह लगातार परेशान रह रहा था. उसके साथ रहने वाले लोग बताते हैं कि ऐसा लगता है कि वह डिप्रेशन का शिकार हो गया था और हताशा में उसने यह कदम उठाया होगा. रामाधार के दोस्तों ने बताया कि वह तेज-तर्रार स्टूडेंट था. लेकिन, पिछले कुछ दिनों से लगातार तनाव में था.

लेकिन अब वर्तमान में सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात ये है कि रामाधार के आत्महत्या का ये मामला अकेला नहीं, इन दिनों पूरे जिले में आत्महत्या की घटना बढ़ गई है. हर दूसरे या तीसरे दिन आत्महत्या की खबर सामने आ रही है.

ऐसे में अब ये सोचना जरूरी हो गया है कि नौकरी को लेकर चतरा जैसे विकासशील जिलों में क्या विचारधारा बनी हुई है, और रामाधार जैसे बेरोजगार युवाओं को आत्महत्या के अलावा कोई और विकल्प क्यों नहीं दिख रहा ।

बताते चलें कि झारखंड में बेरोजगारी की दर देश के औसत से कम है. पिछले कुछ सालों के आंकड़ों की मानें तो इसमें भारी गिरावट देखने को मिली है. साल 2017-18 में झारखंड की बेरोजगारी दर सभी आयु वर्ग में 7.7 फीसदी थी तो वर्ष 2020-21 में ये घटकर 3.3 फीसदी हो गयी.

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